Mirza galib was one of finest Shayar in the world, His shayari was one of finest thing to read .Here we comes with some new shayari.
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Mirza Ghalib Shayari |
अब नासूर सी चुभती है,
किसे पता था मेरी दस्त,
ये यादे ताज महल से बड़ी लगती है!!
अब तू नहीं है दुनिया में,
हु अकेला वही खड़ा,
तू मुमताज़ तो बन गयी
मै रह गया निचे पड़ा!
गुलाब को भी कमल बना देते,
उसकी एक अदा पे कई ग़ज़ल बना देते…
कम्भख्त मरती नहीं मुझ पर लडकियां,
रना लखनऊ में भी ताजमहल बना देते…
न सोचा मैंने आगे,
क्या होगा मेरा हशर,
उसकी एक अदा पे कई ग़ज़ल बना देते…
कम्भख्त मरती नहीं मुझ पर लडकियां,
रना लखनऊ में भी ताजमहल बना देते…
न सोचा मैंने आगे,
क्या होगा मेरा हशर,
तुझसे बिछड़ने का था,
मातम जैसा मंज़र!
तुझे चाहता रहा में इस कदर,
क दुनिया व् भुला बैठा,
तेरी एक हसी क बदले,
अपनी ज़िन्दगी भुला बैठा!
उमीद तो हमने ये की थी,
मातम जैसा मंज़र!
तुझे चाहता रहा में इस कदर,
क दुनिया व् भुला बैठा,
तेरी एक हसी क बदले,
अपनी ज़िन्दगी भुला बैठा!
उमीद तो हमने ये की थी,
में राँझा तेरा तू मेरी हीर बने,
पर शायद खुद को ये मंज़ूर न था,
की तू मेरी तकदीर बने!
यूं तो हर दिल में एक कशिश होती है
हर कशिश में एक ख्वाहिश होती है
मुमकिन नहीं सभी के लिए ताज महल बनाना
लेकिन हर दिल में एक मुमताज़ होती है
ज़िंदा है शाहजहाँ की चाहत अब तक,
गवाह है मुमताज़ की उल्फत अब तक,
जाके देखो तजमहलको ए दोस्तों,
पाथरसे टपकती है मोहब्बत अब तक…
पर शायद खुद को ये मंज़ूर न था,
की तू मेरी तकदीर बने!
यूं तो हर दिल में एक कशिश होती है
हर कशिश में एक ख्वाहिश होती है
मुमकिन नहीं सभी के लिए ताज महल बनाना
लेकिन हर दिल में एक मुमताज़ होती है
ज़िंदा है शाहजहाँ की चाहत अब तक,
गवाह है मुमताज़ की उल्फत अब तक,
जाके देखो तजमहलको ए दोस्तों,
पाथरसे टपकती है मोहब्बत अब तक…
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