rahat indori shayari

शायरी हमेशा से भारत की शान रही है , भारतीय हमेशा से अपने शब्दों के जोहर से विश्व पर छाया रहा है , कभी मिर्ज़ा ग़ालिब , गुलज़ार , राहत इंदोरी जैसे महान शायर ने हमेशा से भारत का सम्मान और बढ़ाया है , राहत इंदोरी उन महान शायर में है जिनकी शायरी हमेशा से आकर्षण का केंद्र रही है , पेश है राहत इन्दौरी जी की प्रशिद्ध शायरी .


राहत इन्दौरी जी की प्रशिद्ध शायरी

विश्वास बन के लोग ज़िन्दगी में आते है,
ख्वाब बन के आँखों में समा जाते है,
पहले यकीन दिलाते है की वो हमारे है,
फिर न जाने क्यों बदल जाते है…

प्यार के उजाले में गम का अँधेरा क्यों है,
जिसको हम चाहे वही रुलाता क्यों है,
मेरे रब्बा अगर वो मेरा नसीब नहीं तो,
ऐसे लोगो से हमे मिलता क्यों है…

तन्हाई ले जाती है जहा तक याद तुम्हारी,
वही से शुरू होती है ज़िन्दगी हमारी,
नहीं सोचा था चाहेंगे हम तुम्हे इस कदर,
पर अब तो बन गए हो तुम किस्मत हमारी

तुम क्या जानो क्या है तन्हाई,
इस टूटे हुए पत्ते से पूछो क्या है जुदाई,
यु बेवफा का इलज़ाम न दे ज़ालिम,
इस वक़्त से पूछ किस वक़्त तेरी याद न आई…

आज फिर उसकी याद ने रुला दिया,
कैसा है ये चेहरा जिसने ये सिला दिया,
दो लफ्ज लिखने का सलीका न था,
उसके प्यार ने मुझे शायर बना दिया

कितना इख़्तियार था उसे अपनी चाहत पर,
जब चाहा याद किया,जब चाहा भुला दिया…..
बहुत अच्छे से जनता है वो मुझे बहलाने क तरीके,
जब चाहा हँसा दिया,जब चाहा रुला दिया….

मौत मांगते हे तो ज़िन्दगी खफा हो जाती है
ज़हर लेते हे तो वो भी दवा हो जाती है
तू ही बता ए दोस्त क्या करूँ.
जिसको बी चाहते हे तो वो बेवफा हो जाती है!

रोना पड़ता है एक दिन मुस्कुराने के बाद..
याद आते हैं वो दूर जाने के बाद..
दिल तो दुखता ही है उसके लिए..
जो अपना न हो सके इतनी मोहबत जताने के बाद

तू याद करे न करे तेरी ख़ुशी
हम तो तुझे याद करते रहते हैं
तुझे देखने को दिल तरसता है
हम तो इंतज़ार करते रहते है

सब होंगे यहाँ मगर हम न होंगे,
हमारे न होने से लोग काम न होंगे,
ऐसे तो बहुत मिलेंगे प्यार करने वाले,
हम जैसे भी मिलेंगे मगर वो हम न होंगे

कभी न आये मेरे साथ चलके..
हमेशा गए मुझे बर्बाद करके..
अगर कभी आ जाओ मेरी मय्यत पे..
तो कह देना अभी सोया हैं तुजे याद करके…

किसे खबर थी तुझे इस तरह सजाऊंगा
ज़माना देखेगा और मैं न देख पाऊंगा
हयात-ओ-मौत,फ़िराक-ओ-वसाल सब यकजा
मैं एक रात में कितने दिए जलाऊंगा

पला बढ़ा हूँ अभी तक इन्ही अंधेरों में
मैं तेज़ धुप से कैसे नज़र मिलाऊंगा
मेरे मिज़ाज की यह मरदाना फितरत है
सवेरे सारी अज़ीयत मैं भूल जाऊँगा

तुम एक पर्द से बावस्ता हो मगर मैं तो
हवा के साथ बहुत दूर दूर जाऊंगा
मेरा ये अहद है आज शाम होने तक
जहाँ से रिज़्क़ लिखा है वही से लाऊंगा

वक़्त ये रुखसत कही तारे कही जुगुनू आये
हार पहनाने मुझे फूल से बाज़ू आये
बस गयी है मेरे अहसास में ये कैसी महक
कोई खुशबू मैं लगाऊ और उन में तेरी खुशबू आये

मैंने दिन रात खुद से ये दुआ मांगी थी
कोई आहात न हो दर पे मेरे और तू आये
उस की बातें के गुल ओ लाला पे शबनम बरसे
सब को अपनाने का उस शोख को जादू आये

इन दिनों आप का आलम भी अजब आलम है
सोख खाया हुआ जैसे कोई जवां आये
आपने छु कर मुझे पत्थर से फिर से इंसान किया
मुद्दतों बाद मेरी इन् आँख में आंसू आये


इस ज़ख़्मी प्यासे को कोई इस तरह पिला देना
पानी से भरा शीशा इन् पत्थर पे गिरा देना
इन पत्तो ने गर्मी भर साये में हमे रखा
अब टूट के गिरते हैं तो बेहतर है जल देना

छोटे कद-ओ-कामत पे मुमकिन है हँसे जंगल
एक पैर बहुत लम्बा है उस को गिरा देना
मुमकिन है की इस तरह वेह्शत में कमी आये
कभी इन् परिंदों पर एक गोली चला देना

अब दूसरों की खुशियाँ चुभने लगी है इन् आँखों में
ये बल्ब बहुत रोशन है ज़रा इस को बुझा देना
लोग हर मोड् पे रुक रुक के संभालते क्यों हैं
इतना डरते हैं जब सब तो फिर घर से निकलते ही क्यों हैं

मैं न जुगनू हूँ , न कोई दिया हूँ , और न कोई तर हूँ
रौशनी वाले मेरे नाम से ही जलाते क्यों हैं

नींद से मेरा ताल्लुक़ है ही नहीं बरसों से
फिर ख्वाब में आकर के वो मेरी छत पे टहलते क्यों हैं

मोड् होता है जवानी का संभालने के लिए
और सब लोग यहीं एके फिसलते क्यों हैं


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